| विकास विषयक भारतीय चिंतन |
भारतीय विकास चिंतन को विविध मनीषियों ने तात्विक रूप में प्रस्तुत किया है। इस विकास प्रक्रिया के अनुसार विकास चिरंतन है तथा उसे युगसुसंगत नियमों के अनुरूप प्रस्तुत करना यह उस युग का पुरुषार्थ है।
इस युग में मनीषियों ने इन्ही तत्वों को सबके सम्मुख प्रस्तुत किया है। इसमें महात्मा गाँधी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, आचार्य विनोबा भावे, राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज, श्री दत्तोपंतजी ठेंगड़ी जैसे अनेक मनीषियों के नाम जोड़े जा सकते हैं। इन तत्वों को विस्तारित रूप में रखने हेतु भी अनेक प्रयास हुए हैं।
आज धरातल पर अनेक कार्यकर्ता विकास विषयक प्रयासों से जुड़े हुए हैं। इस चिंतन का उनके कार्यों को उपयुक्त लाभ हो सकता है ऐसा हमारा विश्वास है।।
महात्मा गाँधी जी का युगसुसंगत विकास विषयक चिंतन
- स्वराज्य का अर्थ है शासकीय नियंत्रण से मुक्त होने का लगातार प्रयास करना फिर वह नियंत्रण चाहे विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी।
- ‘रामराज्य’ का अर्थ है शुद्ध नैतिक सत्ता के आधार पर स्थापित जनता की सार्वभौम सत्ता।
- प्रकृति सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है, अभिलाषाओं की नहीं।
- विकास की नीव स्वावलम्बन एवं परस्परावलम्बन के आधार पर होनी चाहिए।
आचार्य विनोबा भावे जी का युगसुसंगत विकास विषयक चिंतन
- अपना देश स्वतंत्र गाँवों का स्वतंत्र देश था।
- मुग़ल शासन काल में यह स्वतंत्र गाँवों का गुलाम देश बना।
- अंग्रेज शासन काल में यह गुलाम गाँवों का गुलाम देश बना।
- भारतीय स्वतंत्रता के बाद वह गुलाम गाँवों का स्वतंत्र देश बन गया है।
- हमें अपना देश पुनः स्वतंत्र गाँवों का स्वतंत्र देश बनाना है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का युगसुसंगत विकास विषयक चिंतन
- संयत उपभोग से अधिकतम आनंद की प्राप्ति का ध्येय।
- नैसर्गिक संसाधनों का संयमित दोहन करने वाली व्यवस्था का निर्माण।
- आवश्यकताएँ निर्माण करने वाली व्यवस्था को छोड़ कर आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली व्यवस्था का निर्माण।
- विकास जनचेतना के आधार पर शासन की भूमिका मार्गदर्शक, प्रेरक, सहयोगी।
- अधिकार निर्णय प्रक्रिया, प्रयास, उत्पादन तथा स्वामित्व के विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा देना।
- परंपरागत तथा आधुनिक समुचित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
- अर्थव्यवस्था, उद्यम, शासन आदि के साथ परिवार एवं समाज की भी विकास में भूमिका।
- स्वयंशासी एवं स्वायत्त संस्था निर्मिति को बढ़ावा।
- मूल्याधारित स्पर्धा तथा सहकार का सुयोग्य समायोजन।
विकास विषयक भारतीय दृष्टिकोण
- भारतीय विकास चिंतन को कई मनीषीयों ने तात्विक रूप में प्रस्तुत किया। उन विचारों का योजक ने संकलन किया हुआ पुस्तक