| मध्य भारत वनांचल समृद्धी योजना से जुड़े संस्थाओं के प्रयास।

मध्य भारत वनांचल समृद्धी योजना से जुड़कर विविध जिलों में स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएं विकास कार्यों को समाजाभिमुख करने का प्रयास कर रही हैं।


यह प्रयास गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश ऐसे विभिन्न राज्यों में चल रहे हैं। कुछ बड़े संघटनों ने भी कार्यकर्ता के क्षमता विकसन तथा स्थानीय कार्यों को सक्षक्त करने हेतु इस योजना के आधार पर अपनी योजनाएं बनायी हैं।

2020 से 2023 तक विभिन्न संकुलों मे प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर 1900 से अधिक परिवारों की आजीविका सशक्त हुई और
उनका स्थलांतर कम करने मे सफलता मिली है ।

* डॉ आंबेडकर वनवासी कल्याण ट्रस्ट - डांग जिला गुजरात के जामलापाड़ा संकुल मे प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और कृषि आधारित उद्योग निर्माण से 200 से अधिक परिवारों का
   आढ़तिक विकास हुआ तथा 500 हे अधिक जमीन टिकाऊ विकास प्रबंधन कार्यों से विकसित हुई । डांग जिले के खामल तहसींल मे पारंपारिक मिलेट रागी के सामूहिक प्रक्रिया उद्योग
   की शुरुआत हुई है ।  इसका लाभ 100 से अधिक परिवारों को होगा ।

* श्री मारुती ग्राम्य विकास ट्रस्ट - दाहोद जिले के धानपुर तहसील के रतनमहाल ग्राम संकुल मे पहलीबार बीज उत्पादन का कार्य शुरू हुआ है । इससे संकुल के 500 से भी अधिक
    किसानों को सुरक्षित और अच्छे उत्पाद वाले बीज गाव मे ही मिलेंगे ।

* वनवासी कल्याण आश्रम - नाशिक जिले के पेठ तहसील के रगतविहिर समूह मे वनधन विकास केंद्र के माध्यम से स्थानीय वन उत्पादन – बांस के प्रबंधन और सामूहिक बिक्री के
   माध्यम से 32 लाख का उत्पन्न 400 से अधिक जनजातीय परिवारों को मिला । उन्होंने इस राशि का उपयोग सिचाई, कृषि हेतु मशीन, कर्जा उतरना, गौमाता पालन, आदि के लिए किया ।
   इसका लाभ उन्हे मिलता रहेगा । मनरेगा के माध्यम से कोरोना के कठिन काम मे तालाब मे मिट्टी निकालने का कार्य हुआ । जिसका लाभ पिछले 3 वर्षों से हो रहा है । अब वहा किसान
   कंपनी की स्थापना हुई है ।

* रिडस - नंदुरबार के अक्कलकुआ तहसील के पर्वतीय क्षेत्र मोलगी के 8 गावों मे स्थानीय परिस्थिति को देखते हुए छोटे जलकुंड और ड्रिप इरगैशन के माध्यम से कृषि आधारित आजीविका
   को मजबूत किया है । इसका लाभ 100 से अधिक परिवारों को हुआ है । मनरेगा से माध्यम से भी इस संकुल के 3 गावों मे 1 करोड़ रुपये  से अधिक राशि मजदूरी के माध्यम से मिली । जिसका
   लाभ 400 जनजाति परिवारों को हुआ है ।