| शाश्वत विकासार्थ व्यवस्था निर्मिती |
स्थानीय प्रयासों के साथ-साथ भारतीय विकास चिंतन को बढ़ाने हेतु विशेष संस्था निर्माण की आवश्यकता है। भारत में एक विषय को लेकर जीवनभर कार्य करने की प्राचीन परंपरा है। भारतीय गुरुकुल परंपरा इसका उत्तम उदाहरण है। भारतीय समाज भी अपने अपने क्षेत्रों की आवश्यकता के अनुसार व्यवस्थाएं, तकनीक तैय्यार करने हेतु प्रयासरत रहता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय जलवायू के अनुकूल एवं आवश्यकता अनुसार निर्माण हुए गोवंश हैं। विभिन्न कारणों से यह परम्परा कम होती जा रही है।
किसी भी विषय को प्रस्थापित करने हेतु संस्थाएं एवं व्यवस्थाओं की एक श्रृंखला तैयार करने की आवश्यकता होती है। योजक ने सदा ही विकेन्द्रित व्यवस्था निर्माण को बढ़ावा दिया है। ये व्यवस्थाएं तीन स्तरों पर तैयार हो ऐसा योजक का मानना है।

Akshay Krushi Parivar

Shashwat Vikas Prabodhan Parishad
राष्ट्रीय संस्थाएं
राष्ट्रीय स्तर पर विषय विशेष को लेकर अध्ययन, क्षमता विकसन, नीति निर्धारण हेतु कार्यरत संस्थाएं। ये संस्थाएं उस विषय विशेष के महत्त्व को सदा समाज, शासन के सम्मुख रखने का प्रयास करेंगी, उसके लिए अध्ययन करेंगी। शासन को नीति बनाने, उसमे सुधार करने के लिए सहयोग करेंगी। समाज की अपनी नीति बनाने हेतु सहयोग देंगी।
भारत में कृषि की सैकड़ों वर्षों की परंपरा है। कृषि विकास की एक पद्धति यहाँ विकसित हुई है। प्राकृतिक संसाधनों को संभालते हुए कृषि उत्पाद को चिरंतन रखना यह उसकी विशेषता रही है। कृषि -पारस्थितिकीय क्षेत्र के अनुसार फसलों के प्रकार, उनके बीज, कृषि पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। भारत के इन प्राचीन सूत्रों को देश में प्रसारित करना, इन सूत्रों के आधार पर कृषि करने हेतु किसानों का प्रशिक्षण, उसके लिए साहित्य बनाना, स्थानीय संस्थाओं को सक्षम करना, शासन की नीति में इन विचारो की छबि दिखाई दे इस हेतु अक्षय कृषि परिवारनामक संस्था का गठन हुआ है। इस में योजक ने अपनी भूमिका का निर्वाह किया है। संस्था के माध्यम से देशभर में भारतीय कृषि चिंतन पर मंथन का कार्य हो रहा है।
क्षेत्र / प्रान्त स्तर की संस्थाएं
भारत की विविधता और फैलाव को देखते हुए भारतीय विकास चिंतन को अलग अलग क्षेत्रों में वहां की आवश्यकताओं के आधार पर प्रस्तुत करने, इस चिंतन के विषय में समाज में जागृति बढ़ाने तथा इस चिंतन के आधार पर समाज में विकास कार्यों को गति मिले इस हेतु संस्था – व्यवस्था की आवश्यकता है। ये व्यवस्थाएं सांस्कृतिक इकाइयां, विशेष समुदाय प्रभाव क्षेत्र, कृषि-पारिस्थितिकीय क्षेत्र, प्रान्त स्तर ऐसे विभिन्न इकाइयों के लिए हो सकती हैं।
गुजरात के जनजाति क्षेत्रों में भारतीय विकास चिंतन प्रसार करने तथा स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं का क्षमता विकसन करने हेतु ‘शाश्वत विकास प्रबोधन परिषद’ इस संस्था का गठन हुआ है। इन क्षेत्रो में इस चिरंतन विकास की प्रक्रिया को बढ़ाने हेतु अब कार्य शुरू हुआ है। इस संस्था ने अपना कार्यक्षेत्र गुजरात के १४ जनजातीय जिलों तक सिमित किया है। संस्था के माध्यम से मध्य भारत वनांचल समृद्धि योजना, प्रबुद्ध नागरिकों के लिए चर्चा सत्र, जनजाति क्षेत्रों के विभिन्न विषयों के लिए तकनीकी कार्यशालाएं आदि का आयोजन किया जा रहा है।
स्थानीय संस्थाएं
भारतीय विकास चिंतन में विकास हेतु स्थानीय संस्थात्मक रचनाओं पर बल दिया गया है। लोगों ने एक-साथ आकर विविध कार्यों के लिए संस्थाएं बनाना आवश्यक है। मध्य भारत योजना के माध्यम से ग्राम समूह स्तर पर त्रि-स्तरीय संस्था निर्मिति हेतु आग्रह रखा गया है। इस में पूर्ण रूप से तृणमूल स्तर पर संसाधन उपयोगिता गुट, ग्राम स्तर पर विकास समिति तथा ग्राम समूह स्तर पर परिसर सेवा समिति का निर्माण होता है। इसके साथ साथ विभिन्न कार्यों के लिए ट्रस्ट या सोसायटी बनाना, कृषि उत्पादक कम्पनी बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है।
इसी प्रकार स्थानीय विशेषता, प्रश्नों को लेकर संस्थात्मक कार्य को भी बढ़ावा देने का कार्य चलता है। उदाहरण के लिए विदर्भ के वर्धा जिले में गवलव नाम का भारतीय गोवंश है। स्थानीय परिवेश में कृषि कार्य हेतु बहुत उपयोगी माना गया है। लेकिन अब यह विलुप्ति की कगार पर पहुंचा है। इसके संरक्षण के लिए गवलव जतन, संवर्धन, संशोधन पैदासकार चेरिटेबल ट्रस्ट नामक संस्था का निर्माण हुआ है। यह संस्था इस गोवंश को परम्परागत रूप से संभालने वाले ग्वाले कार्यकर्ताओं ने ही मिलकर बनायी है। इसके अंतर्गत Nandurbar District Development Council तयार हो चुका है।
नंदुरबार जिले में “समुत्कर्ष” नामक संस्था के गठन को प्रोत्साहन दिया गया। इस में मुख्य रूप से स्थानिक उद्योजक और युवा हैं जो जिले के विकास हेतु उद्योग बढ़ाना चाहते हैं। इसके माध्यम से नंदुरबार में स्थानीय प्राकृतिक संसाधन आधारित उद्योग विकास का एक अभिलेख बनाया गया है। अब उसको बढ़ावा देने के लिए प्रयास हो रहे हैं।