| मध्य भारत वनांचल समृद्धि योजना |
‘मध्यभारत वनांचल क्षेत्र’ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, तेलंगणा, झारखंड, ओड़िशा, तथा पश्चिम बंगाल इन राज्यों के कुछ चुनिंदा जिलों से बनता है। लगभग १५० जिले इस में सम्मिलित होते हैं। यह क्षेत्र ‘घोषित वनक्षेत्र’ तथा ‘घोषित अनुसूचित क्षेत्र’ भी है। इस क्षेत्र में सघन वन तथा पहाडों की शृंखला पायी जाती है। भारत में रहने वाले कुल जनजातीय समूदायों की लगभग ८०% जनजातीय जनसंख्या इस क्षेत्र में निवास करती है। वन-पशुधन-कृषि आधारित आजीविका यहाँ के समृद्धी कि बरसों से आधार रही है। यहाँ के जन हमेशा अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में प्रकृति से सामंजस्य बनाते रहे हैं। संसाधनों का दोहन यह यहाँ का अलिखित नियम रहा है। यहाँ के धारणाक्षम अर्थात शाश्वत विकास की यही धारणा रही है।
पिछले कुछ वर्षों से विकास की धारणा अत्यंत संकीर्ण होती जा रही है। इस काल में विकास के आंतर्विरोध, संघर्ष के अनेक उदाहरण हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। इस संकीर्ण विचारधारा का सबसे बुरा प्रभाव मध्यभारत वनांचल क्षेत्र पर दिखायी दे रहा है। विकास के आधुनिक मानदंडो के अनुसार यह क्षेत्र बहुत ही पिछड़ा साबित हो रहा है। प्राकृतिक संसांधनोंकी अपार क्षती, मीट्टी का बहाव, अनुत्पादक एवं कम उत्पादक खेती, वनोन्मूलन ने इस क्षेत्र की आजीविका को असुरक्षित बना दिया है। खान पान से संबंधित कुपोषण, बालमृत्यु, बेरोजगारी यहाँ की अब पहचान बन गयी है। इस परिस्थिति के चलते बढ़ता जन आक्रोश, असंतोष समस्या को और जटिल बना रहा है।
मध्यभारत वनांचल क्षेत्र की वर्तमान स्थिती की कार्यक्रम, उपक्रमात्मक एवं वैचारिक धरातल पर चहुमुखी चिकित्सा करते हुए, क्षेत्र को धारणाक्षम अर्थात शाश्वत विकास की दिशा में अग्रेसर बनाना सर्वोच्च वरियता प्राप्त कार्य है। इस विषय के अध्ययनकर्ता कहते हैं, ‘भारत में प्रचलित विकास से निर्मित समस्याओं की जड़ विकास की अभारतीय अवधारणाओ के आधार पर चल रही प्रक्रिया है। विकास विषयक भारतीय अवधारणा की पुर्नस्थापना यही इसका सही समाधान है।’ इस हेतु समय – समय पर भारत में विभिन्न व्यक्ति- मनीषियों ने युगसुसंगत चितंन प्रस्तृत किया है। साथ में यह आग्रहपूर्वक कहा है कि, ‘दृष्टिविकास के पश्चात ही सृष्टिविकास का कार्यारंभ करना चहिए।’
मध्यभारत वनांचल समृद्धि योजना
दक्षिण गुजरात से चलकर पश्चिम बंगाल तक का क्षेत्र जो भारत का मध्य क्षेत्र कहलाता है, पहाड़ों एवं वनों से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र अधिकांश जनजातियों का निवास स्थान है। इस क्षेत्र पर प्रचलित विकास का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
- न्यूनतम उपभोग से अधिकतम आनंद प्राप्ती का लक्ष |
- केवल आवश्यकताऐ पूरी करनेवाली व्यवस्था |
- पर्यावरण स्नेही धारणाक्षम उत्पादन वृद्धी | धारणाक्षमता को बढाकर अधिक समृद्धि |
- परंपरागत तथा आधुनिक समुचित प्रौद्योगिकी का उपयोग |
- अधिकारों का, निर्णयों का, प्रयासों का, उत्पादन तथा स्वामित्व का विकेंद्रीकरण |
- विकास जनचेतना के आधार पर | शासन की भूमिका केवल मार्गदर्शक, प्रेरक, सहायक की |
- बाजार, शासन, उद्योगपति व कर्मचारीयों के साथ साथ परिवार, समाजगुट का भी विकास में योगदान |
- स्वयंशासी, स्वायत्त व्यवस्थाओं को प्रोत्साहन |
- रोजगार उत्पादक एवं विकासकारी |
- अपना जिला / परिसर के विकास संबधित वर्तमान परिस्थिति का अध्ययन करना |
- विकास की भारतीय अवधारणाओं को समझना |
- जन सहभागीता और विशेषज्ञों के साथ चयनित ग्राम समूह की विकास नीति तथा कार्य योजना बनाना |
- स्थानीय समुदाय को कार्ययोजना व्यवहारिकता में लाने हेतु हर संभव सहयोग देना |
- ग्राम प्राकृतिक संसाधन की स्थिती का समुदाय के साथ अध्ययन |
- न्यूज़ पेपर से परिसर की विकास स्थिती को समझना |
- शासकिय-गैर शासकिय सांख्यिकीय जानकारी संकलन, विश्लेषण |
- प्राकृतिक रचनाओं को समझना |
- युगसुसंगत भारतीय चिंतन आधारित विकास के सूत्र, दिशाबोध – सुनना, पढ़ना, समझना |
- प्रेरणा प्रवास – विकास के सफल असफल प्रयास देखना, सुनना, समझना |
- तकनीकी संस्था भेट तथा तकनीक कार्यशालाओ में सहभागिता परिसर विकास हेतु समुचित तकनीक सुनना, पढ़ना, समझना |
- अध्ययन अनुभूति कार्यशाला में सहभाग स्वअध्ययन का शास्त्रशुद्ध प्रस्तुतीकरण करना, अन्य अध्ययनकर्ताओं का प्रस्तुतीकरण देखना, अध्ययन के निष्कर्ष पर विचार विमर्श |
- ग्रामसमूह, ग्रामसंकुल संकल्पना समझना, प्रत्यक्ष कार्य हेतु ग्रामसमूह चयन करना |
- प्राकृतिक संसाधन आधारित – विषय विशेषज्ञ और गाँव समाज के साथ विकास योजना बनाना |
- युवा चेतना जागरण – विकास में जनसहभागिता सभी स्तरपर सुनिश्चित करने की प्रक्रिया समझना |
- शासकीय अशासकीय धनदातओं का परिचय |
- संस्थागत, संघटनात्मक, ग्रामस्तरीय जानकारी प्रलेखन, दस्त संभालनेकी विधि बनाना, सुनना, समझना |
- विकासदृष्टया ग्रामोपयोगी भारतीय कानून जानना, समझना |
- स्थानीय परिस्थिति अनुरूप विज्ञानाधारित नूतन सेवाकार्य जानना, समझना |
- परिसर में, ग्रामसमूह में लोकसंचालीत व्यवस्था के आधारपर शाश्वत विकास दृष्टि से कार्य प्रारंभ करना |
- योजना का कार्यकाल दो वर्ष रहेगा | हर वर्ष श्रावण माह में (अगस्त) में योजना प्रारंभ होती है |
- स्वयंसेवी संस्थाओं के ट्रस्टी/ विश्वस्त गण
- सामाजिक संस्थाएँ, जनसंघटन के कार्यकर्ता
- विकास विषयक अध्ययनकर्ता